अब तो अपना शहर भी बेगाना सा लगता है
कुछ सुना कुछ अनछुआ सा लगता है
रही भी अब तो मुजसे मेरा पता पूछती है
दो पल में ही हाले बाया ले गति हैमाँ के आँचल का सुकून और हमदम के दामन को अभी पकड़ा ही था मैंने
की बिगानी सदके वापस बुला लेती है
वक्त ने कुछ यु उधेडी मेरी चादर
मैं सोता रहा गया और सवेरा हो गया