Monday, October 20, 2008

तन्हाई की चुभन

तन्हाई की चुभन
रातो में सताती है
जाने कौन है वो जो
दबे पाव चली आती है
क्या जनता हूँ में उसे
या बस मेरा एक खवाब है
जाने क्या है उसमे
की हर पल वो मेरे पास है
दिन रत भटकता हुआ
जाने में किधर चल पड़ा
उसकी तलाश में ख़ुद को दूदने लगा
सोचा मेलूँगा तो कुछ पूचुगा उससे
पर जब मेला तो
होसे ही गवा गया
अब उससे बिचादने का गम
मुघे हर पल सताने लगा
जाने क्यों हर पल रातो में वो मुगे
वह रुक रुक कर रुलाने लगा
प्यार और इंतजार की इस हद को तोड़कर
अब मुगे जाने कौन सा रास्ता है जो फिर बुलाने लगा
फिर बुलाने लगा फिर बुलाने लगा !

Thursday, September 25, 2008

अब तो अपना शहर भी बेगाना सा लगता है

कुछ सुना कुछ अनछुआ सा लगता है

रही भी अब तो मुजसे मेरा पता पूछती है

दो पल में ही हाले बाया ले गति है
माँ के आँचल का सुकून और हमदम के दामन को अभी पकड़ा ही था मैंने

की बिगानी सदके वापस बुला लेती है

Tuesday, September 23, 2008

सवेरा



वक्त ने कुछ यु उधेडी मेरी चादर


मैं सोता रहा गया और सवेरा हो गया